कभी किसी का सहारा बन गए,
तो कभी किसी का सहारा ले लिया,
कुछ इस तरह से फलसफा-ए-ज़िन्दगी
निभाते चले गए.
हर मोड़ पे,
ज़िन्दगी लेती रही इम्तेहाँ,
हम हौसले बुलंद किये,
अपना जिगरा दिखाते चले गए.
ग़म का बाज़ार गरम था,
निकल पड़े हम भी, इतराते हुए, उन गलियों से,
ग़म रश्क खाके गिरते गए,
और हम मुस्कुराते चले गए