कितनी ही मुश्किलें क्यूँ न आ जायें,
हौसले मगर कम न होंगें,
हालात भले कितनी ही दफे गिराए न क्यूँ हमें,
हम गिरेंगे, गिरते रहेंगे और गिरके फिर उठेंगे.
ये दुनिया, ये ज़िन्दगी भी गर बन जाये दुश्मन हमारे,
हौसलों में मगर कमी न आएगी हमारी,
सौ बार ही हराए न ये क्यूँ हमें,
सौ न सही, एक बार तो हम इसे ज़रूर हराएंगे.
गर हम उनसे जीत भी न पाएं तो क्या?
हार कर भी ये बाज़ी हम उससे जीत जायेंगे,
क्यूंकि यूँ बार बार गिरना, उठना, फिर गिर जाना, फिर उठ जाना,
इससे परेशान होकर वो खुद एक दिन अपना रास्ता बदल जायेंगे.
1 comment:
bahut aacha hai
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