Tuesday 18 November 2008

धैर्य धर

आज बड़े दिनों बाद आसमान की तरफ गौर से देखा,
काले बदलो से घिरा आसमान, धीरे धीरे बढ़ रहा था.
वैसे तो काले बादल आसमान में अच्हे लगते है,
पर आज मानो आसमान कुछ और ही कहना चाहता हो,
अपने खुश मिज़ाजी के पीछे की पीड़ा बताना चाहता हो
हौले हौले चलते बादलों के छटने का इंतज़ार करता
अपना विस्त्रीत और उज्वल चेहरा दिखाना चाहता हो.

प्रेरणा के स्रोत, इस आसमान को सुनते और समझते हुए,
जाने क्यूँ उससे एक डोर सा बंधा महसूस हुआ,
समानता की छत्री ओढ़े, मानो एक मोड़ पर खड़े होकर,
एक जैसे विचारों और सोच की जाल में फसे हों दोनों
अगर आसमान की छाती पर काले बादल छाए है,
तो मेरे मन के आसमान में भी शंकाओ के बादल छाए है.
आसमान को अपने बादल चाटने का इंतज़ार और मुझे अपने.

इस इंतज़ार के बीच मंद-मंद चलती ठंडी हवा के थपेड़े,
बादल को धकेलने की कोशिश करते हुए, आसमान से कहते है,
"बादल छटने वाले है धैर्य धर, सुबह होने वाली है धैर्य धर".
मेरे मन के ज़मीन पर चल रहे प्रार्थनाओ और आशाओ की पवन कहती है,
"बादल छटने वाले है धैर्य धर, सुबह होने वाली है धैर्य धर".

इन प्रार्थनाओ और आशाओ के साथ खड़े हम दोनों,
अपने-अपने बादलों के छटने का इंतज़ार करते हुए,
मानो एक दुसरे को सांत्वना दिए जा रहे है.,
"धैर्य धर बंधू धैर्य धर".