Sunday 1 January 2012

जीना अभी बाक़ी है

न दे इतने ज़ख्म,
कि जी न सकूँ,
ग़म की शराब, 
पी न सकूँ,
पीना चाहती हूँ,
कि रात अभी बाकी है,
पैमाना भर चूका है,
छलक जाना अभी बाक़ी है |

माना के ग़म का समन्दर,
है मेरे लिए,
कमबख्त पिए तो कोई,
इसे कैसे पिए,
डूबना चाहती हूँ मगर,
तैरना अभी बाकी है,
मौत की तमन्ना है मगर,
जीना अभी बाकी है |

काँटों का दामन,
है मेरा मुक़द्दर,
कि नसीब में नहीं है,
फूलों का बिस्तर,
मत बीछा राहों में और कांटे,
कि दूर तलक चलना अभी बाकी है,
कुरेद मत ज़ख्मों को मेरे,
कि तन्हाई में सिसकना अभी बाकी है ||

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